james webb space telescope

इमेजिन करें कि अगर आपको हमारी दुनिया से 3000 लाइट ईयर्स दूर किसी और प्लेनेट पर भेजा जाए और वहां जाकर आप एक इन तिहाई पावरफुल टेलीस्कोप की मदद से अर्थ पर झूम करें तो मालूम है कि आपको अर्थ पर क्या दिखेगा हैरतअंगेज तौर पर आपको अर्थ का वह दौर नजर आएगा जो आज से 3000 साल पहले हुआ करता था यानी वह दौर जब एशियन इजिप्शियन पिरामिड्स बनाया करते थे 

James webb space telescope

इसका मतलब यह हुआ कि पावरफुल टेलीसप आपके लिए एक टाइम मशीन का काम करेगा बेशक आप 3000 साल पहले वाले अर्थ पर जा तो नहीं सकते लेकिन आप उसको देख जरूर सकेंगे अब आप इमैजिनेशन से निकलकर इस मशीन को देखें क्योंकि यही है वह टेलीस्कोप जो हमारे दुनिया से करोड़ों लाइट ईयर्स दूर मौजूद गैलेक्सी स्टार और प्लैनेट्स के फास्ट में देखने की काबिलियत रखता है और यह 30 सालों की मेहनत के बाद आखिरकार बना लिया गया है The Spydi पर आपका अभिनंदन है 

 यह टेलीस्कोप नासा के साइंटिस्ट 30 सालों से बना रहे थे जिसको आज James Webb Space Telescope टेलीस्कोप कहा जाता है 10 बिलीयन डॉलर्स या फिर 75000 करोड रुपए खर्च करके बनाए जाने वाला यह टेलिस्कोप हजारों इंजीनियर की खून पसीने की मेहनत का नतीजा है यह दुनिया का सबसे पावरफुल और सबसे ज्यादा कंपलेक्स टेलीस्कोप है जो यूनिवर्स में करोड़ों अरबों साल पहले होने वाले वाक्य को देख सकता है 

और इसी वजह से इसे कहीं साइंटिस्ट टाइम मशीन का नाम दे रहे हैं नासा के पास एक ऐसी चीज आ चुकी है जिसके जरिये अब कई सारी चीजों का पर्दा खुलने वाले है

लेकिन सवाल ये है कि करोड़ों अरबों साल बा फास्ट में जो कुछ हुआ वह यह टेलीस्कोप कैसे देख सकते गा यह टेलीसप काम कैसे कर सकता है और हम इसके जरिए क्या-क्या देख सकते हैं इन सवालात के बारे में जानने से पहले जरूरी यह है कि हम यह जाने कि हमें चीजें नजर कैसे आती है जब हम किसी अंधेरे कमरे में दाखिल होते हैं

 बेशक हमारी आंखें खुली हो पर हमें कुछ नजर नहीं आता लेकिन जैसे ही कमरे में लाइट ऑन की जाती है तो हमें सब कुछ दिखना शुरू हो जाता है इसका मतलब यह हुआ कि जब कमरे में अंधेरा था तब वह तमाम चीजें वहीं मौजूद थी पर हमें दिखाई नहीं दे रही थी जब जब लाइट ऑन होने के बाद जब लाइट उन तमाम ऑब्जेक्ट्स से रिफ्लेक्ट होकर हमारी आंखों पर पड़ी तब हमें सब कुछ नजर आने लगा यानी हमारे किसी भी चीज को देखने के लिए लाइट बहुत जरूरी है लाइट जो कि 300000 किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से ट्रैवल करती है 

उसको एक छोटे से कमरे के अंदर फेरने में जरा सी भी देर नहीं लगती लेकिन जब यही लाइट हमारे इतने बड़े यूनिवर्स में फैलती है तो जाहिर है कि इसको भी एक जगह से दूसरी जगह पर जाने में टाइम लगता है चांद और अर्थ के दरमियान तकरीबन 384000 किलोमीटर का फासला है सूरज की रोशनी चांद से टकराकर जब अर्थ तक पहुंचती है तभी हमें चांद नजर आता है और यह रोशनी चांद से अर्थ तक पहुंचने में 1:15 सेकंड लगाती है

 इसका मतलब यह हुआ जो चांद हम देख रहे होते वह असल में चांद का 1:15 सेकंड का पुराना वर्जन होता है यह तो रहा चांद जो अर्थ से काफी करीब है दूर जो चमकता तारा आप देख रहे हैं यह है से ट्रेन जो कि हमारे ही सोलर सिस्टम का एक प्लेनेट है अर्थ से लेकर 7 रन तक का फासला करीब 160 Crore किलोमीटर है 


लाइट जॉब की 300000 किलो मीटर पर सेकंड की स्पीड से ट्रेवल करती है इसको सैटर्न से अर्थ तक आने में पूरे 5333 सेकंड या फिर डेढ़ घंटा लग जाएगा जो कि हम सैटर्न अर्थ से देख रहे होते हैं यह असल में 6 टन का डेड घंटे पुराना वर्जन होता है अगर इस वक्त सैटर्न टूट कर दो टुकड़े भी हो जाए तब भी हमें यह डेड घंटे तक ऐसे लिखता रहेगा तो यह कहा जाए कि हम से ट्रेन के फास्ट में देख रहे होते हैं तो यह भी गलत नहीं है 

इस पर साइंटिस्ट और एस्ट्रोनॉट्स स्पेस में डिस्टेंस को किलोमीटर में नहीं बल्कि लाइट ईयर्स या फिर लाइट आवर्स में कैलकुलेट करते हैं इस पर्स में लाइट 1 घंटे तक ट्रैवल करने के बाद जितना भी फासला तय करती है उस फासले को एक लाइट हावर कहा जाता है और यही लाइटस्पेस में 1 साल तक ट्रेवल करेगी तो जितना भी फैसला होगा उस फासले को एक लाइट ईयर कहा जाएगा जैसा कि आपने जाना से ट्रेन से अर्थ तक लाइट को आने में डेढ़ घंटा लगता है तो हम यह भी कह सकते हैं कि सेंट्रल अर्थ से 1.5 Light Hour दूर है 

अब हम चलते हैं अपने सोलर सिस्टम से भी बाहर यूनिवर्स बहुत बड़ी है इतनी बड़ी की जो आप देखोगे गैलेक्सी इसमें यह एक मिल्की वे गैलेक्सी होती है और इस गैलेक्सी में जो छोटे-छोटे डॉट्स होते हैं यह हमारे सोलर सिस्टम के आसपास के होते हैं यह मिल्की वे गैलेक्सी 125000 लाइट ईयर्स जितनी फैली हुई है यानी हमारी गैलेक्सी के एक कोने से दूसरे कोने तक लाइट को पहुंचने में पूरे 125000 साल लग जाएंगे लेकिन हैरान करने वाली बात यह है 


कि ऐसी ला तादात गैलैक्सीस इस यूनिवर्स में मौजूद है और हमारी आंखें उनको देख सकती नहीं है वह इसलिए क्योंकि इतना दूर होने की वजह से उनकी लाइट इतनी डिम है कि हमारी आंखें उस लाइट को कैप्चर नहीं कर पा रही है लेकिन फिर भी इन गैलेक्सी और इनमें मौजूद प्लैनेट्स को देखना हो तो फिर इस्तेमाल किया जाता है टेलिस्कोप को टेलिस्कोप के अंदर करो ढे चैफ का मिलन हो लगा होता है 

जो थोड़ी सी भी लाइट को 13 पॉइंट फोकस पर रिफ्लेक्ट करता है जिससे बहुत धीमी लाइट भी मल्टी लाइट हो जाती है जो टेलीस्कोप जितनी लाइट इकट्ठे कर पाएगा वह उतनी ज्यादा चीजों को स्पेस में देख सकेगा 1990 में लांच होने वाला Hubble Telescope हमारे सोलर सिस्टम से 10 बिलियन लाइट साल दूर है मौजूद गैलेक्सी को भी देख सकता है हबल के इस सिस्टम को दीपफील्ड भी कहा जाता है

ये Deep Field से ली गयी फ़ोटो है

और असल में हम इन गैलेक्सी के पास में देख रहे हैं इतना Past कि जब हमारी दुनिया भी नहीं बनी थी

जी हां गैलेक्सी इसका यह वर्जन जो आप देख रहे हैं इनमें से जो लाइट निकल रही है वह असल में 10 अरब साल पहले निकली थी जो आज हमारे तक पहुंची है जबकि अर्थ आज से साडे 4 साल पहले पहले था अब सवाल यह उठता है कि जब हबल टेलीस्कोप ऑलरेडी के लिए किस चीज के पास में देख सकता है तो फिर हमें जेम्स वेब स्कैन टेलिस्कोप की जरूरत क्यों पड़ी हबल टेलीस्कोप में 2.4 मीटर बड़ा जबकि जेम्स वेब में सिक्स पॉइंट 5 मीटर बड़ा मेला लगा हुआ है हबल टेलीस्कोप इंसान आंखों से 100 गुना ज्यादा लाइट कटी करने की काबिलियत रखता है 

जबकि जेम्स टेलिस्कोप इंसानी आंखों से 1000000 गुना ज्यादा लाइट इकट्ठे कर पाएगा इंजीनियर्स का कहना है कि जेम्स वेब इतना पावरफुल है कि अगर उसको चांद पर रखा जाए तो वह अर्थ पर किसी छोटी से कैंडल लाइट को भी देख सकता है

ना सिर्फ इतना बल्कि जेम्स वेब स्कोप टेलीस्कोप इंफ्रारेड लाइट को भी देखने की काबिलियत रखता है साइंस के मुताबिक जो गैलेक्सी और स्टार हमसे दूर जा रहे हैं उनकी लाइट हमारे तक पहुंचते-पहुंचते इंफ्रारेड लाइट में कन्वर्ट हो जाती है इंफ्रारेड लाइट जो नाही हबल डिटेक्ट कर सकता है और ना ही इंसानी आंखें जेम्स टेलीस्कोप की मदद से हमें उन गैलेक्सी का भी पता लग जाएगा जो यूनिवर्स में मौजूद मौजूद है

 लेकिन अभी दिखाई नहीं दे रही इस टेलिस्कोप का मेन मेरठ 18 हिस्सों में ऐसे बनाया गया है कि जब उसको इस पर सेटल में डाला जाएगा तो वह फोटो सकेगा और इस पर्स में एक खास मुकाम पर जाते ही उसके मेरठ को दोबारा खोल लिया जाएगा क्योंकि जेम्स वेब टेलीस्कोप को इंफ्रारेड लाइट डिटेक्ट करनी है 

इसी वजह से इसका स्पेस में ठंडा होना बहुत जरूरी है इसके मिरर वाली साइड पर सूरज की तपिस न लगे उसी वजह से इसकी  डायरेक्शन सूरज के ऑपोजिट साइड पर होगी जबकि इसकी बैक साइड पर सनशील्ड की छह लेट्स लगाई गई है यह सनशील्ड खुलने के बाद एक टेलिस्कोप की साइज इतनी फैल जाती है

 यह सब कुछ इतना कंपलेक्स है कि स्पेस में इसके खुलने के वक्त एक छोटी सी भी गलती हुई तो करोड़ों डॉलर और सालों की मेहनत एक ही पल में ढेर हो जाएगी 25 दिसंबर 2021 जेम्स वेब स्पेस मैं हमेशा हमेशा के लिए रवाना कर दिया गया है जेम्स वेब को अर्थ से तकरीबन 1500000 किलोमीटर दूर 1 पॉइंट पर पार किया जाएगा जिसको एडुप्वाइंट कहा जाता है

 नासा के एस्टीमेट के मुताबिक 25 जनवरी 2022 को यह टेलीस्कोप अल्टो पॉइंट पर पहुंच जाएगा और अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ तो L2 पहुंचते ही जेम्स वेब टेलीस्कोप अपना काम शुरू कर देगा उम्मीद है आपको सब कुछ पसंद आया होगा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ